महिलाओं केे साथ बढ़ते घरेलू हिंसा जैसे अपराध को कम करनेे के लिए और महिलाओं के हक के दायरे को बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अब घरेलू हिंसा की शिकार महिला को सास-ससुर समेत पति के किसी भी रिश्तेदार के घर में रहने का अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसलेे केे तहत अब महिलाओं को दर—दर की ठोेकेरे नहीं खाना पड़ेगा। इस फैसले का उद्देश्य बहू का ससुराल में अधिकार सुनिश्चित कराना है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि ‘बहू को आश्रित ससुराल में रहने का अधिकार है। बहू को पति या परिवार के सदस्यों द्वारा साझा घर से निकाला नहीं जा सकता है।
क्या है फैसला :
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण कानून, 2005 की धारा-2(एस) का दायरा विस्तारित कर दिया है। जिसमें पति के साझा घर की परिभाषा है। इसके अनुसार हिंसा के बाद घर से निकाली गई महिलाओं को अब दर-दर नहीं भटकना पड़ेगा। वह पति के साझा घर में रह सकेगी, जो इससे पहले मुमकिन नहीं था।
कब और क्यों बना घरेलु हिंसा कानून :
भारत में महिलाओं के साथ मार—पीट, दहेज के नाम पर महिलाओं को परेशान करना, लैंगिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित करना इस तरह के अपराध और हिंसा को रोकने केे लिए वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण देने के लिए यह कानून बनाया गया था। महिलाओं की सुरक्षा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, 26 अक्टूबर 2006 को लागू किया गया था।
किस तरह केे अपराध घरेलू हिंसा के अंतर्गत आते हैं :
- शारीरिक हिंसा – मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, लात-घूसा मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना शारीरिक हिंसा के अंतर्गत आता है।
-
यौनिक या लैंगिक हिंसा – महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिए विवश करना, बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना, अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को आहत करना इसके अंतर्गत आता है।
-
मौखिक और भावनात्मक हिंसा – किसी महिला या लड़की को किसी भी वजह से उसे अपमानित करना, उसके चरित्र पर दोषारोपण लगाना, शादी मर्जी के खिलाफ करना, आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक दुर्व्यवहार करना।
-
आर्थिक हिंसा – बच्चों की पढ़ाई, खाना, कपड़ा आदि के लिए धन न उपलब्ध कराना, रोजगार चलाने से रोकना, महिला द्वारा कमाए जा रहे धन का हिसाब उसकी मर्जी के खिलाफ लेना।
जानकारी के अभाव में महिलाएं अपने साथ र्दुव्यवहार को सहती रहती हैं। हिंसा करने वाले के साथ उसे सहने वाला भी कहीं न कहीं उतना ही अपराधी है। कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा के विरुद्ध बने कानून का दायरा विस्तृत कर महिलाओं को उच्चतर अधिकार दिया है। महिलाओं को अब डरने की नहीं, बल्कि जागरूक होने की आवश्यकता है।